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ऐसे समभाव में तो अधर्म होकर रहेगा || आचार्य प्रशांत, उत्तर गीता पर (2020)

2024-10-24 1 Dailymotion

‍♂️ आचार्य प्रशांत से मिलना चाहते हैं?<br />लाइव सत्रों का हिस्सा बनें: https://acharyaprashant.org/hi/enquir...<br /><br /> आचार्य प्रशांत की पुस्तकें पढ़ना चाहते हैं?<br />फ्री डिलीवरी पाएँ: https://acharyaprashant.org/hi/books?...<br /><br />~~~~~~~~~~~~~<br /><br />वीडियो जानकारी: 04.01.2020, विश्रांति शिविर, पुणे, महाराष्ट्र, भारत <br /><br />प्रसंग: <br />जीवितं मरणं चोभे सुखदु:खै तदैव च।<br />लभालाभे प्रियद्वेष्ये य: सम: स च मुच्यते।।<br />~ (श्लोक ४, उत्तर गीता अध्याय ४)<br /><br />भावार्थ: जो जीवन-मरण, सुख दुःख, लाभ-हानि तथा प्रिय-अप्रिय आदि द्वंदों को समभाव से देखता है, वह मुक्त हो जाता है।<br /><br />~ क्या ऐसा संभव है की ऐसा व्यक्ति जो सबकुछ समभाव से देखता है वो अधर्म में कार्यरत हो जाये?<br />~ समभाव का क्या अर्थ है?<br />~ आत्मस्थ कैसे रहें?<br />~ द्वन्द्वों में समभाव रखने से मुक्ति कैसे मिलती है?<br />~ मुक्त पुरुष के क्या लक्षण हैं?<br />~ समभाव रखना धर्म है या अधर्म?<br /><br /><br />संगीत: मिलिंद दाते<br />~~~~~~~~~~~~~

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